This aarti was composed by swamiji in his saadhna kaal for his Guruji but later on the devotees of swamiji started reciting this for him.
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आरती गुरु सतगुरु शरणा अखण्ड मण्डलाकारं व्याप्तं ये न चराचरम्। गुरु सतगुरु शरणा, जाई के करहु पुकारनियाँ। जहाँ दुःख न सुख, जहाँ काम न क्रोध। रस एक अखण्डा, जहाँ ज्ञान प्रचण्डा। गुरु भेद बताई, भ्रम दोष मिटाई। चल सतगुरु देसा, जहाँ कोई न कलेसा। तजि दूसर आसा,हो छूटे यमत्रासा। त्वमेव माता च पिता त्वमेव त्वमेव बंधु च सखा त्वमेव। पूर्ण मदः पूर्णमिदं पूर्णात पूर्ण मुदच्यते। शान्तिः शान्तिः शान्तिः |