This aarti was composed by swamiji in his saadhna kaal for his Guruji but later on the devotees of swamiji started reciting this for him.

 

 

 

     

               आरती

      गुरु सतगुरु शरणा

 अखण्ड मण्डलाकारं व्याप्तं ये न चराचरम्।
 तत्पदं दर्शितं ये न तस्मै श्री गुरुवे नमः।।
 गुरुब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
 गुरुर्साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नमः।।

 गुरु सतगुरु शरणा, जाई के करहु पुकारनियाँ।
 जहाँ दिवस न राती, केवल ब्रह्म प्रकाशनियाँ।।

 जहाँ दुःख न सुख, जहाँ काम न क्रोध।
 लोभ न मोह, अभागनियाँ।।

 रस एक अखण्डा, जहाँ ज्ञान प्रचण्डा।
 काल न व्याल, विनाशनियाँ।।

 गुरु भेद बताई, भ्रम दोष मिटाई।
 ममता मोह, निवारनियाँ।।

 चल सतगुरु देसा, जहाँ कोई न कलेसा।
 केवल ब्रह्मविचारनियाँ।।

 तजि दूसर आसा,हो छूटे यमत्रासा।
 गुरु के चरन चित लावनियाँ।।

 त्वमेव माता च पिता त्वमेव त्वमेव बंधु च सखा त्वमेव।
 त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव त्वमेव सर्वं मम देव देवः।।
 सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः।
 सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्र्चिद दुःखभाग्भवेत।।

 पूर्ण मदः पूर्णमिदं पूर्णात पूर्ण मुदच्यते।
 पूर्णस्य पूर्ण मादाय पूर्ण मेवावशिष्यते।।

 शान्तिः शान्तिः शान्तिः

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